Tuesday, June 22, 2021

पंचतत्व में विलीन हुए 'उड़न सिख' मिल्खा सिंह

 पंचतत्व में विलीन हुए 'उड़न सिख'  मिल्खा सिंह


भारतीय खेल का जब भी जिक्र होगा मिल्खा सिंह का नाम सबसे ऊपर की लिस्ट में लिखा जाएगा। वह देश के पहले ट्रैंक ऐंड फील्ड सुपर स्टार थे। मिल्खा सिंह ने शुक्रवार रात को चंडीगढ़ में अंतिम सांस ली। मिल्खा सिंह के करियर का सबसे खास लम्हा तब आया जब 1960 के रोम ओलिंपिक में पदक से चूक गए थे। आईये अब हम मिल्खा सिंह जीवन के बारे मे जानते है |


पाकिस्तान के गोविंदपुरा में जन्मे उड़न सिख मिल्खा सिंह शनिवार को अपनी अनंत यात्रा पर रवाना हो गए। जीवन में हर कठिनाई को पार कर मिल्खा सिंह ने वो पहचान बनाई कि दुनिया उनकी मुरीद बन गई। कोरोना जैसी नामुराद बीमारी ने उनका जीवन बेशक छीन लिया लेकिन वे दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे। चंडीगढ़ में शनिवार शाम जब उनकी अंतिम यात्रा शुरू हुई तो पूरा चंडीगढ़ अपने हीरो को सलामी देने उमड़ पड़ा। 

मिलखा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविन्दपुर (जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में पड़ता है) में एक सिख जाट परिवार में हुआ था। भारत के विभाजन के बाद की अफ़रा तफ़री में मिल्खा सिंह ने अपने माँ-बाप को खो दिया। अंततः वे शरणार्थी बन के ट्रेन से पाकिस्तान से  भारत आए। ऐसे भयानक बचपन के बाद उन्होंने अपने जीवन में कुछ कर गुज़रने की ठानी। मिल्खा सिंह सेना में भर्ती होने की कोशिश करते रहे और अंततः वर्ष 1952 में वह सेना की विद्युत मैकेनिकल इंजीनियरिंग शाखा में शामिल होने में सफल हो गये। एक बार सशस्त्र बल के उनके कोच हवीलदार गुरुदेव सिंह ने उन्हें दौड़ (रेस) के लिए प्रेरित कर दिया, तब से वह अपना अभ्यास कड़ी मेहनत के साथ करने लगे। वह वर्ष 1956 में पटियाला में हुए राष्ट्रीय खेलों के समय से सुर्खियों में आये।

एक होनहार धावक के तौर पर ख्याति प्राप्त करने के बाद उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़े सफलतापूर्वक की और इस प्रकार भारत के अब तक के सफलतम धावक बने। कुछ समय के लिए वे ४०० मीटर के विश्व कीर्तिमान धारक भी रहे। कार्डिफ़, वेल्स, संयुक्त साम्राज्य में १९५८ के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण जीतने के बाद सिख होने की वजह से लंबे बालों के साथ पदक स्वीकारने पर पूरा खेल विश्व उन्हें जानने लगा। इसी समय पर उन्हें पाकिस्तान में दौड़ने का न्यौता मिला, लेकिन बचपन की घटनाओं की वजह से वे वहाँ जाने से हिचक रहे थे। लेकिन न जाने पर राजनैतिक उथल पुथल के डर से उन्हें जाने को कहा गया। उन्होंने दौड़ने का न्यौता स्वीकार लिया। दौड़ में मिलखा सिंह ने सरलता से अपने प्रतिद्वन्द्वियों को ध्वस्त कर दिया और आसानी से जीत गए। अधिकांशतः मुस्लिम दर्शक इतने प्रभावित हुए कि पूरी तरह बुर्कानशीन औरतों ने भी इस महान धावक को गुज़रते देखने के लिए अपने नक़ाब उतार लिए थे, तभी से उन्हें फ़्लाइंग सिख की उपाधि मिली।

सेवानिवृत्ति के बाद मिलखा सिंह खेल निर्देशक, पंजाब के पद पर थे। मिलखा सिंह ने बाद में खेल से सन्यास ले लिया और भारत सरकार के साथ खेलकूद के प्रोत्साहन के लिए काम करना शुरू किया। वे चंडीगढ़ में रहते थे। जाने-माने फिल्म निर्माता, निर्देशक और लेखक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने वर्ष 2013 में इनपर भाग मिल्खा भाग नामक फिल्म बनायी। ये फिल्म बहुत चर्चित रही। 'उड़न सिख' के उपनाम से चर्चित मिलखा सिंह देश में होने वाले विविध तरह के खेल आयोजनों में शिरकत करते रहते थे। हैदराबाद में 30 नवंबर,2014 को हुए 10 किलोमीटर के जियो मैराथन-2014 को उन्होंने झंड़ा दिखाकर रवाना किया।

फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर एथलीट मिल्खा सिंह का 18 जून 2021 को देर रात में निधन हो गया। 91 वर्षीय मिल्खा सिंह का निधन पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ में हुआ। हल ही मिल्खा सिंह कोरोना संक्रमित हुए, जिसके बाद वह स्वास्थ्य भी हो गए। इसी सप्ताह मिल्खा सिंह की पत्नी निर्मल कौर का निधन कोविड 19 के कारण हुआ। मिल्खा सिंह के निधन की पुष्टि उनके बेटे जीव मिल्खा सिंह ने की है। अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर भारत का नाम रोशन करने वाले मिल्खा सिंह के निधन की खबर से पूरा देश दुःख में है। भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिल्खा सिंह के निधन पर शोक व्यक्त किया है।

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